क्या खुले बाजार, खुली पूंजी और खुले श्रम व्यवस्था पर फिर से सोचने की जरूरत नहीं है।
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अब सवाल यह उभरता है कि पिछले कार्यकाल में मनमोहन सरकार आर्थिक मंदी के असर को झुठलाने वाले बयान क्यों देती रही? आर्थिक मंदी, आर्थिक विकास, खुली पूंजी निवेश जैसे जटिल आर्थिक मुद्दे का सच क्या है?